मैं जो हूँ, जैसी हूँ, खुद से बहुत प्रेम करती हूँ..

कुछ पुरानों को खो कर ,नए का आगाज करती हूँ...
अपने मन की कर के,कभी अपनो को नाराज करती हूँ..

आंखों में नींद लिए ,ख्वाबों का इंतजार करती हूं
हर ख़्वाब सच हो सकता है ,इस बात पे एतबार करती हूँ

कभी अपनों से लड़कर नाराज हुआ करती हूँ
तो कभी उन्हीं के साथ बैठ के, मजाक किया करती हूँ...

जिंदगी ने जो नया फूल खिलाया है, उसे एहसास करती हूँ..
जिंदगी यूँही खूबसूरत बनी रहे, बस यहीं प्रयास करती हूँ..

जीवन के छोटे से सफ़र के लिए योजना बहुत गढती हूँ...
तो कभी बैठ सिराहने माँ के ,चैन से सोया करती हूँ..

हाथों में कलम लिए, कुछ नया लिखने का प्रयत्न करती हूँ.
तो कभी कुछ बिता भूल कर,आगे जाने का अभ्यास करती हूँ..

ठेस ना पहुँचे दिल को,इसलिए खुद से बतिया लिया करती हूँ,
मैं जो हूँ, जैसी हूँ, खुद से बहुत प्रेम करती हूँ..

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